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Home Reference Criticism & Interviews Hindi Ka Kathetar Gadya : Parampara Aur Prayog
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Hindi Ka Kathetar Gadya : Parampara Aur Prayog
by Dayanidhi Mishra
4.7
4.7 out of 5
Creators
AuthorDayanidhi Mishra
PublisherVani Prakashan
EditorUdayan Mishra, Prakash Uday
Synopsisकथेतर गद्य-विधाओं को हिन्दी के रचना-संसार ने जिस तत्परता, उत्साह और गम्भीरता से अपनाया, इनके प्रयोग और उपयोग के प्रतिमान स्थापित किये और इन गद्य विधाओं ने साहित्यिक ही नहीं सामाजिक जीवन में भी जिस तरह की वैचारिक हलचलों को जन्म दिया है, उससे जाहिर है कि आलोचना के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक दोनों प्रकारों से कई तरह की और नयी तरह की अपेक्षाएँ जग पड़ी हैं। आलोचना के लिए अब कविता-कहानी जैसे पारम्परिक साहित्य-विधानों में फुरसत नहीं पाने के बहाने, तय है कि बहुत दूर तक और बहुत देर तक चलने वाले नहीं हैं। इसके साथ ही यह भी सच है कि विभिन्न विधाओं के साहित्यिक स्वरूप को स्थायी रूप से तय कर देने वाली मानसिकता को इन कथेतर विधाओं ने अपनी आपसी आवाजाही से पर्याप्त हतोत्साहित किया है। सुधीजन ने इसे 'विधाओं में तोड़फोड़' के रूप में लक्षित करते हुए अक्सर यह स्वीकार किया है कि संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ट, डायरी जैसी विधाएँ एक-दूसरे से जितनी अलग हैं उससे कहीं ज्यादा लगी हुई हैं। यही नहीं, कथा से इतर कही जाने वाली ये विधाएँ बहुधा कथा के भीतर भी अपनी और अपने भीतर भी कथा की पैठ बनाती हैं।