Welcome Back !To keep connected with uslogin with your personal info
Login
Sign-up
Login
Create Account
Submit
Enter OTP
Step 2
Prev
Home Nonfiction Reference Work Himalaya Ka Kabristan
Enjoying reading this book?
Himalaya Ka Kabristan
by Laxmi Prasad Pant
4.6
4.6 out of 5
Creators
AuthorLaxmi Prasad Pant
PublisherVani Prakashan
Synopsisहमालय के साथ दिक्श्कष्त यह है कि हमारे उसे देखने के नजश्रिये में या तो ख़ूबसूरती है या गहरी देव-तुल्य आस्था। अफ़सोस यह है कि सरकारों की मानवीय नीतियाँ भी यहीं से शुरू होती हैं और ख़त्म भी यहीं हो जाती हैं। यही नजश्रिया दुर्भाग्यपूर्ण है। हिमालय हमें जाने क्यों देवदूत दिखता है! मानो ईश्वर से संवाद का रास्ता यहीं से गुज़रकर जाता है। विडम्बना देखिए, हम एक ओर हिमालय की जड़ें खोद रहे हैं तो दूसरी ओर जब कोई पत्थर गिरता है तो उसे हम दैवी आपदा का नाम दे देते हैं। चाहे वो भूकम्प हो या भूस्खलन। ऊपर से ये घोर बाज़ारवादी मानसिकता, जिसने हिमालय की हर चोटी, हर सम्पदा पर प्राइस टैग लगा दिया है। हिमालय के पानी तक को हमने बोतलबन्द कर दिया है, बस डिब्बाबन्द हिमालय आने का इन्तज़ार बाकी है। गौर से देखें तो रंगीन तस्वीरों, फिष्ल्मी दृश्यों में हिमालय हमेशा मुस्कराता दिखता है। धरती का सबसे सुन्दर ठिकाना भी यही लगता है। आप जब भी इन दृश्यों को देखते हैं तो एक नयी अनुभूति भी पाते हैं। लेकिन, जाने क्यों हमारे कल्पना-लोक में हिमालय की निशानदेही फिष्ल्मी दृश्यों की ख़ूबसूरत लोकेशनों से आगे नहीं बढ़ पाती है। एक फिष्ल्म, कुछ तस्वीरें और कैरियरवादी वाइल्डलाइफष् या नेचुरल-फषेटोग्राफर जो देखते हैं या हमें दिखाने के लिए अपने कैमरों में दर्ज़ कर ले जाते हैं वही हिमालय का सच नहीं है। न हिमालय पोलर बियर के फर से बना कोई टैडी बियर है। मौजूदा कषनूनों, नियमों और नीतियों से टूटता-बिखरता, सड़ता-गलता हिमालय न हमें दिखता है और न ही दिखाया जाता है। संक्षेप में, हिमालय की याद तभी आती है जब मई-जून की गर्म हवाएँ किसी गाँव-शहर की सरहद में दाखिल होकर हमें तड़पा देने की हद तक तपा देती हैं। पहाड़ों को लेकर हमारा रुझान बच्चों की छुट्टियों तक सीमित है। आश्चर्य होता है, हिमालय हमारे लिए इन तात्कालिक ज़रूरतों से ज्श्यादा कुछ नहीं है। और मान भी लें कि हिमालय को पहचानने का हमारा हुनर यही है, लेकिन फिर सोचिए वैसा हिमालय आपको कैसा लगेगा जिसमें न बर्फ हो, न बादल हों और न हरियाली। केदारनाथ की तबाही, कश्मीर का जलजला और नेपाल का भूकम्प यही संकेत दे रहे हैं और हम सब तबाही की एक और नयी तारीख़ का इन्तज़ार कर रहे हैं।