Welcome Back !To keep connected with uslogin with your personal info
Login
Sign-up
Login
Create Account
Submit
Enter OTP
Step 2
Prev
Home Literature Poetry Hali:Kavi Ek Roop Anek
Enjoying reading this book?
Hali:Kavi Ek Roop Anek
by
4.1
4.1 out of 5
Creators
Author
PublisherVani Prakashan
EditorDr.S.Y.Quraishi
Synopsisमौलाना अलताफ़ हुसैन हाली यों तो पैदा हुए उन्नीसवीं सदी के मध्य में, लेकिन वे आदमी थे इक्कीसवीं सदी के! जो आदमी अपने समय से डेढ़-दो सौ साल आगे की सोचता हो, उसे आप क्या कहेंगे? क्या ऋषि नहीं? क्या स्वप्नदर्शी नहीं? क्या मौलिक विचारक नहीं? क्या क्रान्तिकारी नहीं? क्या प्रगतिशील नहीं? हाली ये सब कुछ थे। इसीलिए एस. वाई. कुरैशी ने इस पुस्तक का नाम दिया है, ‘कवि एक रूप अनेक’! हाली यों तो खुद मौलाना थे, लेकिन उन्होंने अपने गद्य में पोंगापंथी मौलानाओं और मौलवियों की जो खबर ली है, वह वैसी ही है, जैसी कभी कबीर ने ली थी। हाली के समकालीन महर्षि दयानन्द सरस्वती ने जैसे हिन्दू पोंगापंथियों को ललकारा था, लगभग वैसे ही हाली ने भी इस्लामी कट्टरवादियों को खुली चुनौती दी थी। कुरैशी की इस किताब की खूबी यह है कि हाली पर खुद उन्होंने एक लम्बा और विश्लेषणात्मक निबन्ध तो लिखा ही है, उस क्रान्तिकारी और महान शायर पर ऐसे विविध निबन्धों का संकलन किया है, जो उनके हर पहलू पर प्रकाश डालते हैं। इस पुस्तक को पढ़ने से पता चलता है कि मौलाना हाली कितने बड़े राष्ट्रवादी थे, निर्भीक और क्रान्तिकारी विचारक थे, उत्कृष्ट कोटि के शायर थे और अपने समय के सबसे ऊँचे समालोचक भी थे। कुरैशी ने हाली की जीवनी तो नहीं लिखी है, लेकिन उन्होंने हाली के लिए करीब-करीब वही काम कर दिखाया है जो खुद हाली ने सादी, गशलिब और सर सैयद अहमद के लिए किया था। यह संकलन इतना उम्दा है कि इसे पढ़ने पर साहित्य का रसास्वादन तो होता ही है, बेहतर इनसान बनने की प्रेरणा भी मिलती है। हाली थे ही ऐसे गज़ब के आदमी।