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Home Literature Novel Grihdaah
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Grihdaah
by Sharatchandra
4.6
4.6 out of 5
Creators
AuthorSharatchandra
PublisherRadhakrishna Prakashan
Synopsisगृहदाह सामाजिक विसंगतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं का चित्रण करनेवाला शरतचन्द्र का एक अनूठा मनोवैज्ञानिक उपन्यास है । मनोविज्ञान की मान्यता है कि व्यक्ति दो प्रकार के होते हैं–एक अन्तर्मुखी और दूसरा बहिर्मुखी । गृहदाह के कथानक की बुनावट मुख्यत% तीन पात्रों को लेकर की गई है । महिम, सुरेश और अचला । महिम अन्तर्मुखी है, और सुरेश बहिर्मुखी है । अचला सामाजिक विसंगतियाँ, विषमताओं और विडम्बनाओं की शिकार एक अबला नारी है, जो महिम से प्यार करती है । बाद में वह महिम से शादी भी करती है । वह अपने अन्तर्मुखी पति के स्वभाव से भली भाँति परिचित है । मगर महिम का अभिन्न मित्र सुरेश महिम को अचला से भी ज्यादा जानता–पहचानता है । सुरेश यह जानता है कि महिम अभिमानी भी है और स्वाभिमानी भी ।
सुरेश और महिम दोनों वैदिक /ार्मावलम्बी हैं जबकि अचला ब्राह्म है । सुरेश ब्रह्म समाजियों से घृणा करता है । उसे महिम का अचला के साथ मेल–जोल कतई पसन्द नहीं है । लेकिन जब सुरेश एक बार महिम के साथ अचला के घर जाकर अचला से मिलता है, तो वह अचला के साथ घर बसाने का सपना देखने लगता है । लेकिन विफल होने के बावजूद सुरेश अचला को पाने की अपनी इच्छा को दबा नहीं सकता है । आखिर वह छल और कौशल से अचला को पा तो लेता है, लेकिन यह जानते हुए भी कि अचला उससे प्यार नहीं करती है, वह अचला को एक विचित्र परिस्थिति में डाल देता है ।
सामाजिक विसंगतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं का शरतचन्द्र ने जितना मार्मिक वर्णन इस उपन्यास में किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है ।
महिम अचला की बात जानने की कोशिश तक नहीं करता है ।
निर्दोष, निरीह नारी की विवशता और पुरुष के अभिमान, स्वाभिमान और अहंकार का ऐसा अनूठा चित्रण गृहदाह को छोड़ और किसी उपन्यास में नहीं मिलेगा ।