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Home Nonfiction Biographies & Memoirs Globe Ke Bahar Ladki
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Globe Ke Bahar Ladki
by Pratyaksha
4.5
4.5 out of 5
Creators
AuthorPratyaksha
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisप्रत्यक्षा की कहानियों में जितनी कविता होती है, कविताओं में उतनी ही कहानी भी होती है। विधाओं का पारंपरिक अनुशासन तोड़ कर वे एक ऐसी अभिव्यक्ति रचती हैं जिसमें कविता की तरलता भी होती है और गद्य की गहनता भी। यह अनुशासन वे किसी शौक या दिखावे के लिए नहीं, कुछ ऐसा कह पाने के लिए तोड़ती हैं जिसे किसी एक विधा में ठीक-ठीक कह पाना संभव नहीं। हिंदी में गद्य कविताओं का सिलसिला पुराना है, लेकिन ज़्यादातर कवियों के यहां वे एक शौकिया विचलन की तरह दिखती हैं, जबकि प्रत्यक्षा का जैसे घर ही इन्हीं में बसता है। उनका अतीत, उनका वर्तमान, उनके रिश्ते-नाते, उनके जिए हुए दिन, उनके किए हुए सफऱ, सफऱ में मिले दोस्त, उस दौरान लगी प्यास, कहीं सुना हुआ संगीत, मां की याद- यह सब इन कविताओं में कुछ इस स्वाभाविकता से चले आते हैं जैसे लगता है कि रचना के स्थापत्य में इनकी जगह तो पहले से तय थी। फिर वह स्थापत्य भी इतना अनगढ़ है कि पढऩे वाला कदम-कदम पर हैरान हो। प्रत्यक्षा की रचना के परिसर में घूमना एक ऐसे घर में घूमना है जिसमें दीवारें पारदर्शी हैं, जिसके आंगन में धरती-आसमान दोनों बसते हैं, जिसके कमरे अतीत और वर्तमान की कसी हुई रस्सी से बने हैं, जहां ढेर सारे लोग बिल्कुल अपनी जि़ंदा गंध और आवाज़ों-पदचापों के साथ आते-जाते घूमते रहते हैं। हिंदी की इस विलक्षण लेखिका की यह कृति इस मायने में भी विलक्षण है कि अपने पाठक को वह रचना का एक बिल्कुल नया आस्वाद सुलभ कराती है- जिससे गुजऱते हुए पाठक भी अपने-आप को बदला हुआ पाता है। यह वह तिलिस्मी मकान है जिससे निकल कर आप पाते हैं कि दुनिया आपके लिए कुछ और हो गई है। यह पुस्तक प्रत्यक्षा की रचनाशीलता का ही नहीं, हिंदी लेखन का भी एक प्रस्थान बिंदु है। —प्रियदर्शन