Synopsis"कहने को एक आईना टूट बिखर गया
लेकिन मिरे वजूद को किरचों से भर गया
मैं जाने किस ख़याल के तनहा सफ़र में था
अपने आहूत करीब से होकर गुज़र गया
इक आशना से दर्द ने चौंका दिया मुझे
मैं तो समझ रहा था मिरा ज़ख्म भर गया
शायद कि इन्तजार इसी पल का था उसे
कश्ती के डूबते ही वो दरिया उतर गया
मुद्दत से उसकी छाँव में बैठा नहीं कोई
इस सायादार पेड़ इसी ग़म में मर गया
खुशबीर सिंह 'शाद' का कलाम उर्दू के अदबी हलकों में दिलचस्पी से पढ़ा जा रहा है। एक ज़माना था जब मुशायरों में कुबूले-आम मेयार की सनद हुआ करता था लेकिन अगर किसी का क़लाम समाईन को भी मुतासिर करें और क़ारीन को भी मुतवज्जा करने में कामयाब हो तो उसका इस्हाक़ मुसल्लम हो जाता है।
- गोपीचंद नारंग "
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Binding: Paperback
About the author
खुशबीर सिंह 'शाद' उर्दू भाषा के मशहूर शायर हैं। उनकी गज़ल की सात पुस्तकें देवनागरी और उर्दू में एक साथ प्रकाशित हुई है। उनका जन्म 4 सितंबर 1954 को सीतापुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। वह क्राइस्ट चर्च कॉलेज, सिटी मॉन्टेसरी स्कूल और केकेवी लखनऊ के पूर्व छात्र हैं। शाद ने अपनी उस्ताद वली आस से उर्दू शायरी का हुनर सीखा। उनकी प्रकाशित रचनाओं में शामिल हैं जान कब ये मौसम बदले (1992), गिली मिट्टी (1998), चलो कुछ रंग ही बिखरे (2000), ज़रा ये धूप ढल जाए (2005), बेखवाबियान (2007), जहाँ तक जिंदगी है (2009) और बिखरने से ज़रा पेहले (2011)। शाद ने फिल्म निर्माता महेश भट्ट द्वारा निर्देशित बॉलीवुड फिल्म 'धोखा' के लिए गीत भी लिखे हैं।