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Home Literature Poetry Duhaswapn Bhi Aate Hain
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Duhaswapn Bhi Aate Hain
by Ashtbhuja Shukla
4
4 out of 5
Creators
AuthorAshtbhuja Shukla
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisवर्तमान के ‘अंखुआते बीजों’ को इतिहास के ‘गजाकार’ पत्थरों से कुचलनेवाले इतिहास-बोध की पहचान से चलकर यह संग्रह वर्तमान के ज्योतिदंडों को ‘हैण्ड्स-अप’ की मुद्रा में सिर पर थामे खड़ी किशोरियों तक जाता है। ‘शराबी पिताओं / और लतखोर माताओं के / प्रेम और नफरत और बेचारगी की कमाई’ इन किशोरियों के लिए वह इतिहास-बोध जो इतिहास से पहिया उठाकर लाता है और अपने विजयरथ लेकर निकल पड़ता है, अपनी पुस्तकों से राहत का कोई रास्ता नहीं ढूँढ़ पाता। वह शायद ढूँढ़ भी नहीं पाएगा क्योंकि इतिहासविद् तो इतिहास के अन्त की भविष्यवाणी पहले ही कर चुके हैं।
लोकजीवन की विभिन्न छवियों, भाव और भाषा- भंगिमाओं, प्रकृति और साथ ही नागर जीवन के विभिन्न सकारात्मक-नकारात्मक चित्रों का सार्थक निर्वाह करने वाली ये कविताएँ एक बार फिर से अष्टभुजा शुक्ल के अलगपन को रेखांकित करती हैं।
तुकान्त और छंद की शक्ति का पुनराविष्कार करनेवाले कवि अष्टभुजा शुक्ल इस संग्रह की कुछ कविताओं में भी अपने अभीष्ट मंतव्य को कोई ढील दिए बगैर कई याद रह जाने वाली तुकांत पंक्तियाँ देते हैं। ‘भारत घोड़े पर सवार है’ कविता अपनी लय और साफगोई के लिए बार-बार याद की जाएगी।
पाठकों की स्मृति को बराबर विचलित करनेवाली अन्य अनेक कविताएँ भी इस संग्रह में शामिल हैं। सौंदर्य का नितान्त नया आलम्बन प्रस्तुत करने वाली ‘पाँच रुपये का सिक्का’ हो, मितभाषी ‘मनस्थिति’ हो, महँगे फलों को मुँह चिढ़ाने वाले अमरूदों के लिए लिखी कविता ‘तीन रुपये किलो’ हो या कुछ लंबी कविताएँ - जैसे ‘किसी साइकिल सवार का एक असंतुलित बयान’, ‘युगलकिशोर’, ‘यह बनारस है’, ‘पप्पू का प्रलाप’ और ‘गोरखपुर: तीन कविताएँ’, आदि, ये सभी कविताएँ इस संग्रह की उपलब्धि हैं और आधुनिक हिन्दी कविता- परम्परा की भी।
- शकीलुर्रहमान