Synopsisदिनकर जी की स्वराज्योत्तर कृतियों में गद्य की महिमा प्रखरता से निखरी है । स्वराज्य के बाद दिनकर जी के अनेक गद्य-ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं । इनमें 'उजली आग' को किस कोटि में रखना ठीक है इसका निर्णय हिन्दी के आलोचक अब तक नहीं कर पाए हैं । वास्तव में इस छोटी-सी पुस्तक में प्रधानता बोध-कथाओं की है । इन कथाओं के कथानक कभी तो यूरोप में प्रचलित पुराणों से लिये गए हैं तो कभी चीन के दर्शनाचार्यों से किन्तु, कितने ही कथानक बिलकुल मौलिक हैं । इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ में कुछ विचारोत्तेजक काव्यंगन्धी निबन्ध भी हैं । सबसे विलक्षण निबन्ध 'नूतन काव्य-शास्त्र' है जिसकी शैली गद्यकाव्य की है किन्तु चिन्तन काव्यशास्त्रीय है ।
-डी. लक्ष्मीनारायण सुधांशु