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Home Reference Criticism & Interviews Dalit Sahitya: Ek Moolyankan
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Dalit Sahitya: Ek Moolyankan
by Chaman Lal
4.7
4.7 out of 5
Creators
AuthorChaman Lal
PublisherRajpal
Synopsisदलित समाज की पीड़ा सबसे पहले पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी में भक्ति काल के संतों की रचनाओं में मुखरित हुई और उन्होंने निर्भीकता से समाज में फैली इन कुरीतियों के विरुद्ध आवाज बुलंद की। उस समय के रूढ़िवादी समाज में यह एक बहुत बड़ा साहस और जोखिम से बड़ा कदम था।
उन्नीसवीं सदी में दलित चेतना के स्वर पहले महाराष्ट्र में उठे और फिर बहुत से साहित्यकारों ने दलितों की समस्या से संबंधित उत्कृष्ट रचनाएं लिखीं जिनसे देश में नई सामाजिक चेतना जागृत हुई। 'विषैली रोटी', 'मैं भंगी हूं', 'अपने-अपने पिंजरे', 'जूठन' आदि पुस्तकों ने दलित समाज की सोचनीय स्थिति की ओर समाज का ध्यान आकृष्ट किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में दलित समाज की पृष्ठभूमि में लिखे हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य का, दलित महिला लेखन का गहन अध्ययन किया गया है।