Synopsisचारु चन्द्रलेख आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की कलम से निकली हुई एक गहरी संवेद्य कृति है। इसमें 12वीं-13वीं सदी के भारत का व्यक्ति और समाज बहुत बारीकी से व्यक्त हुआ है।
समय के उस दौर में देश के लिए विदेशी आक्रमण का प्रतिरोध एक बड़ी चुनौती का दायित्व था लेकिन देश की समूची अध्यात्मिक तथा इतर शक्तियाँपुरातन अंधविश्वास के रास्ते नष्ट हो रहीं थीं। ऐसे में समाज के पुनर्गठन का काम पूरी तरह से उपेक्षित था और नए मूल्यों के सृजन की ज़रूरत की अनदेखी हो रही थी।
हजारीप्रसाद द्विवेदी का यह उपन्यास उस युग की जड़ता तोड़ने के बहाने काल निरपेक्ष रूप से देश में नए उत्साह का संचार करता है। रचना का यही बल इसे कालजयी बनाता है। एक गाम्भीर्य पूर्ण दायित्व को निभाते हुए चारू चन्द्रलेख एक बेहद रोचक वृत्तान्त भी है और इसीलिए इसकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। आज भी इसकी ललकार को अनसुना कर पाना सम्भव नहीं है।
Enjoying reading this book?
Binding: HardBack
About the author
डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त, 1907 - 19 मई, 1979) हिन्दी के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से हैं। वे उच्चकोटि के निबन्धकार, उपन्यासकार, आलोचक, चिन्तक तथा शोधकर्ता हैं। साहित्य के इन सभी क्षेत्रों में द्विवेदी जी अपनी प्रतिभा और विशिष्ट कर्तव्य के कारण विशेष यश के भागी हुए हैं। द्विवेदी जी का व्यक्तित्व गरिमामय, चित्तवृत्ति उदार और दृष्टिकोण व्यापक है। द्विवेदी जी की प्रत्येक रचना पर उनके इस व्यक्तित्व की छाप देखी जा सकती है।
द्विवेदी जी के निबंधों के विषय भारतीय संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य विविध धर्मों और संप्रदायों का विवेचन आदि है। वर्गीकरण की दृष्टि से द्विवेदी जी के निबंध दो भागों में विभाजित किए जा सकते हैं - विचारात्मक और आलोचनात्मक। विचारात्मक निबंधों की दो श्रेणियां हैं। प्रथम श्रेणी के निबंधों में दार्शनिक तत्वों की प्रधानता रहती है। द्वितीय श्रेणी के निबंध सामाजिक जीवन संबंधी होते हैं। आलोचनात्मक निबंध भी दो श्रेणियों में बांटें जा सकते हैं। प्रथम श्रेणी में ऐसे निबंध हैं जिनमें साहित्य के विभिन्न अंगों का शास्त्रीय दृष्टि से विवेचन किया गया है और द्वितीय श्रेणी में वे निबंध आते हैं जिनमें साहित्यकारों की कृतियों पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार हुआ है। द्विवेदी जी के इन निबंधों में विचारों की गहनता, निरीक्षण की नवीनता और विश्लेषण की सूक्ष्मता रहती है।