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Home Nonfiction Reference Work Brand Modi Ka Tilism Badlav Ki Banagi
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Brand Modi Ka Tilism Badlav Ki Banagi
by Dharmendra Kumar Singh
4
4 out of 5
Creators
AuthorDharmendra Kumar Singh
PublisherVani Prakashan
Synopsisहर दौर में बदलाव के अपने प्रतीक और मानक होते हैं। फिर बदलाव अपने साथ कई तरह के सपने लेकर आता है। लोकतन्त्र में चुनाव एक मायने में सामूहिक सपनों को साकार करने का साधन भी होता है। लेकिन पहली बार कोरे सपनों की चुनावी सियासत ने देश के बड़े हिस्से को प्रभावित किया। जिन क्षेत्रों के नतीजों में उसका असर नहीं दिखा, वहाँ भी वह दिलचस्पी जगा गया। इसके प्रतीक के रूप में नरेन्द्र मोदी नामक ऐसी शख्सियत उभरी, जिसका केन्द्रीय राजनीति में खास बोलबाला नहीं था। वे नये दौर के नये ब्रांड की तरह स्थापित हुए। 2014 में ब्रांड मोदी के विकास और ‘अच्छे दिन’ के सुहाने सपनों ने मतदाताओं के एक बड़े वर्ग के रुझान में नया रंग घोल दिया। लिहाजा, एक नया इतिहास रच दिया गया। मगर कुछ ही समय बाद दिल्ली और बिहार चुनावों ने ब्रांड मोदी को फीका कर दिया। आखिर ब्रांड मोदी कैसे बुना गया, कैसे लोगों में सत्ताधारियों से मोहभंग पर इसका मुलम्मा चढ़ाया गया, कैसे अपनी पार्टी में अहम न माना जाने वाला एक शख्स केन्द्रीय मंच की धुरी बन गया, किन ताकतों और स्थितियों से उसे मदद मिली, कैसे-कैसे मतदाताओं के अलग-अलग वर्ग के रुझान एकरूप हो गये, कैसे उत्तर, पश्चिम और हिन्दी पट्टी में जुनून पैदा हुआ, और कैसे तेजी से उसकी रंगत फीकी पड़ने लगी, ये सवाल लम्बे समय तक राजनीतिक पंडितों का ध्यान खींचते रहेंगे। आखिर ऐसे सपनों के सौदागर समूचे इतिहास में गिने-चुने ही होते हैं। यह किताब इसी रहस्य के हर सूत्र को तमाम आँकड़ों के साथ खोलती है। इन आँकड़ों और बारीक तथा रोचक जानकारियों से कई पुराने और नये मिथक भी धराशायी होते हैं और नये नजरिये की ओर ले जाते हैं। मसलन, मोदी अगुआ न होते तो भाजपा की सीटें 200 के पार नहीं जातीं मगर एनडीए का छोटी-बड़ी 26 पार्टियों के गठबन्धन में विस्तार न हुआ होता तो एनडीए बहुमत से काफी पीछे रह जाता।