Synopsisप्रेमचंद निस्संदेह हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार थे जिनकी गणना विश्वस्तरीय साहित्यकारों में होती है। अपने जीवनकाल में उन्होंने 250 से अधिक कहानियाँ लिखीं जो मुख्यतः उस समय के समाज के यथार्थ को दर्शाती हैं। इनमें बालविवाह, गरीबी, भुखमरी, ज़मींदारों के अत्याचार के खिलाफ एक जागरूकता बढ़ाने का भी प्रयास है। यथार्थ की इन सच्चाईयों से रू-ब-रू कराती कहानियों को पढ़ते हुए पाठक पूरी तरह से खो जाता है। ये कहानियाँ आज भी उतनी ही सामयिक हैं जितनी सौ साल पहले थीं। कहानियों के अतिरिक्त प्रेमचंद ने चैदह उपन्यास और अनगिनत निबंध लिखे। उन्होंने अन्य भाषाओं की कुछ पुस्तकों को भी हिन्दी में अनुदित किया।
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Binding: HardBack
About the author
प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिंदी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिंदी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बंद करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबंध, साहित्य का उद्देश्य अंतिम व्याख्यान, कफन अंतिम कहानी, गोदान अंतिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अंतिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। 1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आंदोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आंदोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिंदी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखंड को 'प्रेमचंद युग' कहा जाता है।