Synopsis...‘‘आज तक उनके किस पूर्वज मुख्यमंत्री ने अपनी जाति को प्रश्रय नहीं दिया? कौन से मुख्य सचिव ने अपनी बिरादरी को महत्त्वपूर्ण पद नहीं सौंपे? कभी-कभी माधव बाबू का चित्त खिन्न हो उठता। क्या इसी स्वतंत्रता के स्वप्न उन्होंने देखे थे?...’’
भ्रष्टाचार और जातिवाद से मँहमँह महकती राजनीति में मुख्यमंत्री माधव बाबू अपने बिगडै़ल पुत्र कार्तिक को साधने के लिए पारम्परिक भारतीय ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हैं, उसकी गाँठ अपने निहित शिक्षक मित्र श्यामाचरण की बेटी जया से बाँधकर। लेकिन सरल, बुद्धिमती और स्वाभिमानी जया पति और मंत्रीपत्नी तथा उनकी नशेड़ी बेटी की समवेत बेहूदगियों से क्षुब्ध आई.ए.एस. परीक्षा की तैयारी के दौरान एक बड़े उद्योगपति के पुत्र शेखर से उनकी भेंट के बाद उसके जीवन में नया मोड़ आने ही वाला था, कि नियति उसके अतीत के पन्ने फरफरा कर फिर उसके आगे खोल देती है।
शहर की कुटिल राजनीति, सम्पन्न राजनैतिक घरानों के दुस्सह पारिवारिक दुष्चक्र और पारम्परिक ग्रामीण समाज की कहीं सरल और कहीं कुटिल काकदृष्टि युक्त टिप्पणियों के ताने-बाने से बुना यह उपन्यास अन्त तक पाठकों की जिज्ञासा का तार टूटने नहीं देता।
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About the author
शिवानी जी का वास्तविक नाम गौरा पन्त था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं। इनका जन्म 17 अक्टूबर 1923 को विजयदशमी के दिन राजकोट, गुजरात मे हुआ था। इनकी शिक्षा शन्तिनिकेतन में हुई! साठ और सत्तर के दशक में, इनकी लिखी कहानियां और उपन्यास हिन्दी पाठकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हुए और आज भी लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं। शिवानी का निधन 2003 ई० मे हुआ। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी,आमादेर शन्तिनिकेतन,विषकन्या चौदह फेरे आदि प्रमुख हैं।
हिंदी साहित्य जगत में शिवानी एक ऐसी शख़्सियत रहीं जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेजी पर अच्छी पकड रही और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई। महज 12 वर्ष की उम्र में पहली कहानी प्रकाशित होने से लेकर 21 मार्च 2003 को उनके निधन तक उनका लेखन निरंतर जारी रहा। उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यासनारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बडे दिलचस्प अंदाज में किया
कहानी के क्षेत्र में पाठकों और लेखकों की रुचि निर्मित करने तथा कहानी को केंद्रीय विधा के रूप में विकसित करने का श्रेय शिवानी को जाता है।वह कुछ इस तरह लिखती थीं कि लोगों की उसे पढने को लेकर जिज्ञासा पैदा होती थी। उनकी भाषा शैली कुछ-कुछ महादेवी वर्मा जैसी रही पर उनके लेखन में एक लोकप्रिय किस्म का मसविदा था।