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by Suryakant Tripathi Nirala
4.3
4.3 out of 5

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Creators
Publisher Rajkamal Prakashan
Synopsis अप्सरा ‘निराला’ की कथा–यात्रा का प्रथम सोपान है । अप्सरा–सी सुन्दर और कला–प्रेम में डूबी एक वीरांगना की यह कथा हमारे हृदय पर अमिट प्रभाव छोड़ती है । अपने व्यवसाय से उदासीन होकर वह अपना हृदय एक कलाकार को दे डालती है और नाना दुष्चक्रों का सामना करती हुई अंतत: अपनी पावनता को बनाए रख पाने में समर्थ होती है । इस प्रक्रिया में उसकी नारी–सुलभ कोमलताएँ तो उजागर होती ही हैं, उसकी चारित्रिक दृढ़ता भी प्रेरणाप्रद हो उठती है । इस उपन्यास में तत्कालीन भारतीय परिवेश और स्वाधिनता–प्रेमी युवा–वर्ग की दृढ़ संकल्पित मानसिकता का चित्रण हुआ है, जो कि महाप्राण निराला की सामाजिक प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत उदाहरण है ।

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Binding: HardBack
About the author सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (21 फरवरी, 1896 - 15 अक्टूबर, 1961) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है। किसी ने उस युग-कवि को ‘महाप्राण निराला’ कहा तो किसी ने उसे ‘मतवाला’ कहा। किसी ने उसे छायावादी युग का ‘कबीर ’कहा तो किसी ने उन्हें ‘मस्तमौला’ कहा । किसी ने उन्हें सांस्कृतिक नवजागरण का ‘बैतालिक’ कहा तो किसी ने उन्हें सामाजिक-क्रान्ति का ‘विद्रोही कवि’ कहा । एक साथ उनके नाम के साथ इतना वैविध्य और वैचित्रय जुटता गया कि इनका जीवन और काव्य दोनों विरोधाभास के रूपक बनते गए। मगर ‘निराला’ सचमुच निराला ही बने रहे। लोगों के द्वारा दिये गये विशेषणों की उन्होंने कभी चिन्ता नहीं की। वे एक साथ दार्शनिक भी थे, समाज-सुधारक भी थे, विद्रोही भी थे, स्वाभिमानी भी थे, अक्खड़ भी थे, फक्कड़ भी थे, उदारचेता भी थे और सबसे बढ़कर ‘महामानव’ थे। युग की पीड़ा और समय का दंश निराला के हृदय को भी सालता रहा और उनके भीतर से शब्द का लावा फूटता रहा। उनके शब्द कहीं अंगार बनकर निकले तो कहीं इन्द्रधनुष बनकर उतरे। इस महान् कवि की जीवन-यात्रा भी फूल और अंगारे के बीच से होकर चलती रही। एक सतत संघर्ष की कहानी उनके जीवन की निशानी बनकर रह गई।
Specifications
  • Language: Hindi
  • Publisher: Rajkamal Prakashan
  • Pages: 171
  • Binding: HardBack
  • ISBN: 9788126713981
  • Category: Novel
  • Related Category: Modern & Contemporary
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