Synopsisभोजन-भंडारे पर यह पुस्तक रसोइयों, हलवाइयों और चौके को मंदिर समझने वाली गृहणियों के लिए लिखी गई है। और उनके लिए भी जो भोजन-रसिक होने के साथ ही अपनी थाली का आदर भी करते हैं और अन्न ही ब्रह्म है का अहर्निश मंत्र जपते हैं। लोकप्रिय लेखक सुशोभित ने समय-समय पर खानपान पर लिखा है और पाठकों ने उसे ख़ूब रस लेकर सराहा है। अब अपने भोजन-सम्बंधी लेखन को एक जिल्द में संयोजित करके उन्होंने यह स्वादिष्ट पुस्तक तैयार की है। बकौल लेखक, ये पुस्तक किसी पेटू ने नहीं लिखी, पर उसने अवश्य लिखी है, जिसके लिए थाली में जूठा छोड़ना पाप है! भारत में भोजन की तुक भजन से मिलाई जाती है। भोजन से प्रेम करने वाले, उसे आश्चर्य से देखने वाले, उससे सरस परितृप्ति पाने वाले वैसे ही एक भारतवासी की रामरसोई का यह सुस्वादु प्रतिफल है।
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Binding: Paperback
About the author
"13 अप्रैल 1982 को मध्यप्रदेश के झाबुआ में जन्म। शिक्षा-दीक्षा उज्जैन से। अँग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर। कविता की दो पुस्तकों ‘मैं बनूँगा गुलमोहर’ और ‘मलयगिरि का प्रेत’ सहित लोकप्रिय फ़िल्म-गीतों पर विवेचना की एक पुस्तक ‘माया का मालकौंस’ प्रकाशित। यह चौथी किताब। अँग्रेज़ी के लोकप्रिय उपन्यासकार चेतन भगत की पाँच पुस्तकों का अनुवाद भी किया है।
संप्रति दैनिक भास्कर समूह की पत्रिका अहा! ज़िंदगी के सहायक संपादक।
ईमेल- [email protected]"