Synopsisकृष्णा को अमोल के दादा और गाभिन बकरी का खुशी–खुशी साथ बैठना, /ाुएँ, गोबर और कविता के बीच जीना याद आ गया । उसे अपने नाना और नानी याद आए और याद आया कि किस तरह वे भी अपना सबकुछµ अपनी जनेऊ, अपने शुद्ध–साफ कपड़े, यहाँ तक कि लाख रखवालीवाला बाग भी छोड़ते चले गए ।
पर उन्होंने प्रेम को, आपसी स्नेह को कभी नहीं छोड़ा ।
प्रेम, क्षमा और प्रेम ।
कृष्णा का मन हुआ कि वह अस्पताल के बिस्तर पर मुड़ी–तुड़ी लेटी इस कमजोर बूढ़ी औरत से, जो भारत सरकार द्वारा सारा प्याज मध्यपूर्व भेजने पर और सारे तेज तथा प्रतिभावान लड़कों को पश्चिम की ओर ठेलनेवाली नीति पर सख्त नाराज हो जाती थी, पूछे कि पार्वती क्या तुम्हें असली प्रेम का मतलब मालूम है । अगर मालूम है तो मुझे भी कुछ बताओ । यह बताओ कि जब इस नई दुनिया में तुम्हारा बेटा और उत्तरा/िाकारी सात समुन्दर पार से सेटेलाइट फोन से डॉक्टरों से एक विदेशी भाषा में बात कर रहा है तब एक बेटी प्रेम की तुम्हारी इस वसीयत को अपनी मातृभाषा में कैसे सँभाले ? ऐसे प्रेम को तुम क्या कहोगी जो सपनों से वास्तविकता को, मनुष्यों से भाषा को और अन्त से शुरू को जुदा ही नहीं करना चाहता ?
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Binding: PaperBack
About the author
Born: February 26, 1946
मृणाल पाण्डे
मृणाल पाण्डे का जन्म 26 फरवरी, 1964 को मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में हुआ। प्रयाग विश्वविद्यालय, इलाहाबाद से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. और गन्धर्व महाविद्यालय से ‘संगीत विशारद’ के अलावा आपने कॉरकोरन स्कूल ऑफ आर्ट, वाशिंगटन में चित्रकला एवं डिजाइन का विधिवत् अध्ययन किया।
कई वर्र्षों तक विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में आईं। साप्ताहिक हिन्दुस्तान, वामा तथा दैनिक हिन्दुस्तान के बतौर सम्पादक समय-समय पर कार्य किया। स्टार न्यूज़ और दूरदर्शन के लिए हिन्दी समाचार बुलेटिन का सम्पादन किया। तदुपरान्त प्रधान सम्पादक के रूप में दैनिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी एवं नन्दन से जुड़ीं। वर्ष 2010 से 2014 तक प्रसार भारती की चेयरमैन भी रहीं।
प्रकाशित पुस्तकें : सहेला रे, विरुद्ध, पटरंगपुर पुराण, देवी, हमका दियो परदेस, अपनी गवाही (उपन्यास); दरम्यान, शब्दवेधी, एक नीच ट्रैजिडी, एक स्त्री का विदागीत, यानी कि एक बात थी, बचुली चौकीदारिन की कढ़ी, चार दिन की जवानी तेरी (कहानी-संग्रह); ध्वनियों के आलोक में स्त्री (संगीत); मौजूदा हालात को देखते हुए, जो राम रचि राखा, आदमी जो मछुआरा नहीं था, चोर निकल के भागा, सम्पूर्ण नाटक और देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास काजर की कोठरी का इसी नाम से नाट्य-रूपान्तरण (नाटक); स्त्री : देह की राजनीति से देश की राजनीति तक, स्त्री : लम्बा सफर (निबन्ध); बन्द गलियों के विरुद्ध (सम्पादन);
ओ उब्बीरी (स्वास्थ्य); मराठी की अमर कृति मांझा प्रवास : उन्नीसवीं सदी तथा अमृतलाल नागर की हिन्दी कृति गदर के फूल का अंग्रेजी में अनुवाद।
अंग्रेज़ी : द सब्जेक्ट इज वूमन (महिला-विषयक लेखों का संकलन), द डॉटर्स डॉटर, माइ ओन विटनेस (उपन्यास), देवी (उपन्यास-रिपोर्ताज), स्टेपिंग आउट : लाइफ एंड सेक्सुअलिटी इन रुरल इंडिया।