Synopsisअब्दुल बिस्मिल्लाह उन चन्द भारतीय लेखकों में से हैं, जिन्होंने देश की गंगा-जमनी तहजीब को काफी करीब से देखा है और उसे अपनी कहानियों और उपन्यासों का विषय बनाया है !
समय की सबसे बड़ी विडम्बना है, मनुष्य का इनसान नहीं हो पाना ! हम हिन्दू, मुसलमान तो है, लेकिन इनसान बनने की जददोजहद हमें बेचैन कर देती है ! यह उपन्यास हिन्दू-मुस्लिम रिश्ते की मिठास और खटास के साथ समय की तिक्ताओं और विरोधाभासों का भी सूक्ष्म चित्रण करता है !
उपन्यास के नायक का संबध ऐसी संस्कृति से है, जहाँ संस्कार और भाषा के बीच धर्म कोई दीवार खड़ा नहीं करता ! लेकिन शहर का सभ्य समाज उसे बार-बार यह अहसास दिलाता है कि वह मुसलमान है ! और इसलिए उसे हिंदी और संस्कृत की जगह उर्दू या फारसी की पढाई करनी चाहिए थी ! वहीँ ऐसे पात्रों से भी उसका सामना होता है, जो अन्दर से कुछ तो बाहर से कुछ और होते है, जो अन्दर से कुछ तो बाहर से कुछ और होते हैं ! उपन्यास की नायिका यूँ तो व्यवहार में नमाज-रोजे वाली है लेकिन नौकरी के लिए किसी मुस्लिम नेता से हमबिस्तरी करने में उसे कोई हिचक भी नहीं होती !
अपवित्र आख्यान मौजूदा अर्थ केन्द्रित समाज और उसके सामने खड़े मुस्लिम समाज के अन्तर्वाहा अवरोधों की कथा के बहाने देश-समाज की मौजूदा सामजिक और राजनीतिक स्थितियों का भी गहन चित्रण करता है !
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Binding: PaperBack
About the author
अब्दुल बिस्मिल्लाह
जन्म : 5 जुलाई, 1949 को इलाहाबाद जिले के बलापुर गाँव में।
शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. तथा डी.फिल्.।
1993-95 के दौरान वार्सा यूनिवर्सिटी, वार्सा (पोलैंड) में तथा 2003-05 के दौरान भारतीय दूतावास, मॉस्को (रूस) के जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र में विजि़टिंग प्रोफ़ेसर रहे।
1988 में सोवियत संघ की यात्रा। उसी वर्ष ट्यूनीशिया में सम्पन्न अफ्रो-एशियाई लेखक सम्मेलन में शिरकत। पोलैंड में रहते हुए हंगरी, जर्मनी, प्राग और पेरिस की यात्राएँ। 2002 में म्यूनि$ख (जर्मनी) में आयोजित 'इंटरनेशनल बुक वीक' कार्यक्रम में हिस्सेदारी। 2012 में जोहांसबर्ग में आयोजित विश्व-हिन्दी सम्मेलन में शिरकत।
कृतियाँ : अपवित्र आख्यान, झीनी झीनी बीनी चदरिया, मुखड़ा क्या देखे, समर शेष है, ज़हरबाद, दंतकथा, रावी लिखता है (उपन्यास), अतिथि देवो भव, रैन बसेरा, रफ़ रफ़ मेल, शादी का जोकर (कहानी-संग्रह), वली मुहम्मद और करीमन बी की कविताएँ, छोटे बुतों का बयान (कविता-संग्रह), दो पैसे की जन्नत (नाटक), अल्पविराम, कजरी, विमर्श के आयाम (आलोचना), दस्तंबू (अनुवाद) आदि।
झीनी झीनी बीनी चदरिया के उर्दू तथा अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित। अनेक कहानियाँ मराठी, पंजाबी, मलयालम, तेलगू, बांग्ला, उर्दू, जापानी, स्पैनिश, रूसी तथा अंग्रेज़ी में अनूदित।
रावी लिखता है उपन्यास पंजाबी में पुस्तकाकार प्रकाशित।
रफ़ रफ़ मेल की 12 कहानियाँ रफ़ रफ़ एक्सप्रेस शीर्षक से फ्रेंच में अनूदित एवं पेरिस से प्रकाशित।
सम्मान : सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, दिल्ली हिन्दी अकादमी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान और म.प्र. साहित्य परिषद के देव पुरस्कार से सम्मानित।
सम्प्रति : केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर।