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Home Nonfiction Biographies & Memoirs Akhilesh : Ek Samvad
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Akhilesh : Ek Samvad
by Piyush Daiya
4.7
4.7 out of 5
Creators
AuthorPiyush Daiya
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisभारतीय कला के व्यापक क्षेत्र में, और हिंदी में तो बहुत कम, ऐसा हुआ है कि कोई कलाकार अपनी कला, संसार की कला, परंपरा, आधुनिकता आदि पर विस्तार से, स्पष्टता से, गरमाहट और उत्तेजना से बात करे और उसे ऐसी सुघरता से दर्ज किया जाये | चित्रकार अखिलेश इस समय भारत के समकालीन कला-दृश्य में अपनी अमूर्त कला के माध्यम से उपस्थित और सक्रिय हैं | उनकी बातचीत से हिंदी में समकालीन कला-संघर्ष के कितने ही पहलू जाहिर होते हैं | पीयूष दईया एक कल्पनाशील संपादक, कवि और सजग कलाप्रेमी हैं | उनकी उकसाहट ने इस बातचीत में उत्तेजक भूमिका निभायी है |
एक जगह अखिलेश कहते हैं : "...चित्र बनाने में सम्प्रेषण मेरा उद्देश्य बिलकुल नहीं है |...चित्र बनाने के दौरान जो आनंद आपने लिया है और उसमे जितना आपका फंसावड़ा है-वह आनंद-दूसरे तक भी पहुँच जाता है : इसमें आप तिरोहित होना ही उस आनंद को दूसरे तक पहुँचाने में सहायक है | यह मनुष्य मात्र को संबोधित है, किसी संस्कृति को नहीं |...स्वामीनाथन का उदहारण देना चाहिए | वे अपने चित्र बनाने के कर्म में उस जगह चले गये जहाँ खुद पारदर्शी हो गए | खुद हट गए अपने चित्रों से | जो चित्र हैं वे ही अपने प्रमाण के रूप में प्रस्तुत हुए-उन सारे मनुष्यों के लिए जो किसी भी संस्कृति से आ रहे हों | सबको उतना ही सहज लगता है जैसे उन्ही का किया हुआ हो |" एक और जगह अखिलेश कलानुभव की व्याख्या यों कहते हैं : "...विशालता का अनुभव ही एक कलाकृति की ताकत हो सकती है | एक अंतहीन यात्रा में प्रवेश करा देती है |" चाहे वह कविता हो, चित्र या संगीत या मंदिर का वास्तु शिल्प हो | उसमे आपका अस्तित्व विला जाता है | आप अपने को नहीं पाते हैं , उसका एक हिस्सा हो जाते हैं | एक अंश बन जाते हैं | यह आपको अपने अन्दर सोख लेता है | यह अनुभव एक अच्छी कलाकृति का गुण है | वह आत्म को अनंत से मिला देती है |"
ऐसी अनेक जगहें इस बातचीत में हैं जहाँ वतरस के सुख के साथ-साथ कुछ नया या विचारोत्तेजक जानने को मिलता है |
हमारे समय में कला को तथाकथित सामाजिक यथार्थ को प्रतिबिम्बन और अन्वेषण के रूप में देखने की जो वैचारिकी उसके प्रतिबिंदु, प्रतिरोध की तरह उभरती है | इस पुस्तक का महत्त्व इससे और बढ़ जाता है | वह एक अपेक्षाकृत जनाकीर्ण परिदृश्य में वैकल्पिक कला और सौन्दर्यबोध के लिए जगह खोजते और बनाती है | उसकी दिलचस्पी किसी को अपदस्थ करने में नहीं है : वह तो अपनी जगह की तलाश करती और फिर उस पर रमने की जिद से उपजी है |-- अशोक वाजपेयी