Synopsisमहीयसी महादेवी की संपूर्ण काव्य-यात्रा न सिर्फ़ आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास बनने की साक्षी है, भारतीय मनीषा की महिमा का भी वह जीवन्त प्रतीक हैं। उनकी कविताएं हिन्दी साहित्य की एक सार्थक कालजयी उपलब्धि हैं। छायावाद की इस कवयित्री की हिन्दी साहित्य में अपनी एक अनूठी पहचान है।
महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल इंदौर में हुई। 22 वर्ष की उम्र में महादेवी जी बौद्ध-दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहती थीं लेकिन महात्मा गांधी से संपर्क होने के बाद अपना निर्णय बदलकर वह समाज सेवा में लग गईं। नारी-शिक्षा प्रसार के उद्देश्य से उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की और प्रधानाचार्य के पद की बागडोर संभाली। महादेवी जी की पहचान एक उच्च कोटि की हिन्दी कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षा-शास्त्री और महिला ‘एक्टिविस्ट’ की थी। उन्हें 1969 में साहित्य अकादमी फ़ैलोशिप, 1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1988 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।
‘आत्मिका’ में संग्रहीत कविताओं के बारे में स्वयं महादेवी ने यह स्वीकार किया है, ‘‘इसमें मेरी ऐसी रचनाएँ संग्रहीत हैं जो मेरी जीवन-दृष्टि, दर्शन, सौन्दर्यबोध और काव्य-दृष्टि का परिचय दे सकेंगी।’’
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Binding: HardBack
About the author
महादेवी वर्मा (26 मार्च1907 — 11 सितंबर 1987) हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की। न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि दीपशिखा में वह जन-जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया।
उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल बृजभाषा में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल संस्कृत और बांग्ला के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं। वर्ष 2007 उनकी जन्म शताब्दी के रूप में मनाया गया। 27 अप्रैल 1982 को भारतीय साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें सम्मानित किया गया था। गूगल ने इस दिवस की याद में वर्ष 2018 में गूगल डूडल के माध्यम से मनाया ।