Synopsisसन् साठ के दशक के कई बांग्ला प्रकाशन महत्वपूर्ण थे। इसी दौर में ‘आंधारमानिक’ उपन्यास लगभग 1967 में प्रकाशित हुआ था। पहली बार कथावस्तु की तर्जनी जनता के इतिहास की तरफ उठी थी।
इस उपन्यास में उपयोग किया गया ‘आंधारमानिक’ नाम एक खास केन्द्र बिन्दु है और इसे रूपक ही मानना चाहिए।
अठारहवीं सदी में बंगाल के समाज में धनी-मानी, जमींदार वगैरह वर्गों के मूल्यबोध का तो दिवाला ही निकल गया था। एक तरफ, जातियों की किचिर-पिचिर, संकीर्णता, अनुदारता, दूसरी तरफ ऐश-विलास! इधर समाज में प्रचलित अन्धविश्वास, कुत्सित प्रथाएँ। बंगाल के समाज का इतिहास अनगिनत विचित्राताओं से भरा था। जंगल इलाकों के लोग, अपने सामन्त स्वामियों के खिलाफ काफी अर्से पहले ही बागी हो चुके थे। इस कृति में वर्गी आक्रमण और उससे जुड़ी कई घटनाओं तथा समाज पर पड़नेवाले उसके प्रभावों का प्रामाणिक चित्राण किया गया है।
‘आंधारमानिक’ प्रमुख रूप से लोकवृत्त का इतिहास है-कलकत्ता से जुड़े मध्यवित जीवन की शुरुआत से पूर्व-मुहूर्त का इतिहास! यह उपन्यास, किसी अर्थ में, समकालीन भी है, क्योंकि वर्ण-श्रेणी शासन का औरतों के प्रति तर्जनी ताने रहने जैसी कितनी बातें हमारे समाज के ऊपरी स्तर तले आज भी विद्यमान है।
आशा है, इस उपन्यास को पढ़ना पाठकों के लिए एक दिलचस्प अनुभव होगा।
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Binding: HardBack
About the author
जन्म : 1926, ढाका।
पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे।
शिक्षा : प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.।
अर्से तक अंग्रेजी का अध्यापन।
कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित।
हिन्दी में अनूदित कृतियाँ : चोट्टि मुण्डा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, अग्निगर्भ, अक्लांत कौरव, 1084वें की माँ, श्री श्रीगणेश महिमा, टेरोडैक्टिल, दौलति, ग्राम बांग्ला, शालगिरह की पुकार पर, भूख, झाँसी की रानी, आंधारमानिक, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, मातृछवि, सच-झूठ, अमृत संचय, जली थी अग्निशिखा, भटकाव, नीलछवि, कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु, बनिया-बहू, नटी (उपन्यास); पचास कहानियाँ, कृष्णद्वादशी, घहराती घटाएँ, ईंट के ऊपर ईंट, मूर्ति, (कहानी-संग्रह); भारत में बँधुआ मजदूर (विमर्श)।
सम्मान : ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ द्वारा सम्मानित।
निधन : 28-07-2016 (कोलकाता)।