Synopsis‘आदिवासी प्रेम कहानियाँ' में इतिहास के अमर पात्रों के प्रेम और संघर्ष को रोचकता और प्रमाण के साथ प्रस्तुत किया गया है । इन कहानियों में झारखंड का आदिवासी परिवेश, प्रकृति, परिस्थितियाँ, आदिवासियों का जीवन, उनकी सहज प्रवृत्तियाँ और स्वतंत्रता-संग्राम में अंग्रेजी सत्ता के साथ उनके द्वारा किया गया संघर्ष उभरकर आया है । गौरतलब है कि औपनिवेशिक काल में अंग्रेजी समाज शोषण और सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध था । अंग्रेजों के शोषण और अन्याय से मुक्ति के लिए आदिवासियों ने संघर्ष की जमीन रची और विद्रोह किया । आदिवासियों के न्याय-प्रेम और सुन्दरता की ओर अंग्रेजी समाज आकर्षित भी हुआ । और यही प्रेम की उत्स-भूमि है । चाहे वह सिदो और जेली हो, चाहे बुन्दी और सन्दु हो, चाहे बीरबन्ता बजल और जेलर को बेटी हो, चाहे मँगरी और रोजवेलगुड हो, चाहे बदल और मैग्नोलिया हो; सबके प्रेम की उत्स-भूमि न्याय-प्रेम और संघर्ष है । इसलिए इन नौ कहानियों में प्रेम के सच्चे स्वरूप का दर्शन होता है । जहाँ बहुत सहजता के साथ प्रेम जीवन में प्रवेश करता है और उसी के प्रति पूर्ण समर्पण भाव है । इन प्रेम कहानियों में कुछ का अन्त सुखान्त है तो कुछ का दुखान्त । पाठक पाएँगे कि इन कहानियों के माध्यम से अपनी जातीय संस्कृति और अपनी भूमि के प्रति मर मिटने के अदभुत ज़ज्बे से लैस आदिवासियों के प्रेम और संघर्ष का जो चित्रण है, वह हमें नए तरीके से देश के इतिहास को समझने के लिए बाध्य करता है ।
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Binding: PaperBack
About the author
1964 में जन्म । डॉ. एम.एस. 'अवधेश' और स्मृतिशेष कमला के सात संतानों में से एक कला स्नातकोत्तर ।
1991 से जिन्दगी और सृजन के मोर्चे पर वन्दना टेटे की सहभागिता । पिछले तीन दशकों से अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों-रंगकर्म, कविता-कहानी, आलोचना, पत्रकारिता, डाक्यूमेंटरी, प्रिंट और वेब में रचनात्मक उपस्थिति । झारखंड एवं राजस्थान के अन्दिवासी जीवनदर्शन, समाज, भाषा-संस्कृति और इतिहास पर विशेष कार्य ।
उलगुलान संगीत नाट्य दल, राँची के संस्थापक संगठक सदस्य । 1987 में रंगमंचीय त्रैमासिक पत्रिका ‘विदेशिया’ (राँची) का प्रकाशन-संपादन; 1995 में भाकपा-माले राजस्थान के मुखपत्र ‘हाका’, 2006 में राँची से लोकप्रिय मासिक नागपुरी पत्रिका ‘जोहार सहिया’ और पाक्षिक बहुभाषी अखबार ‘जोहार दिसुम खबर’ का सम्पादन; फिलवक्त रंगमंच एवं प्रदर्श्यकारी कलाओं को त्रैमासिक पत्रिका ‘रंगवार्ता’ और बहुभाषायी त्रैमासिक पत्रिका ‘झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखडा’ के प्रकाशन से सम्बद्ध ।
प्रकाशित पुस्तके : पेनाल्टी कॉर्नर, इसी सदी के असुर, सालो, अथ दुडगम असुर हत्या कथा (कहानी-संग्रह); जो मिटटी की नमी जानते हैं, ख़ामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता (कविता-संग्रह), युद्ध और प्रेम, भाषा कर रही है दावा (लम्बी कविता); छाँइह में रउद (दुष्यंत कुमार की ग़जलों का नागपुरी अनुवाद); एक अराष्ट्रीय वक्तव्य (विचार); नागपुरी साहित कर इतिहास (भाषा साहित्य), रंग-बिदेसिया (भिखारी ठाकुर पर, सं.), उपनिवेशवाद और आदिवासी संघर्ष (सम्पादित), मरड गोमके जयपाल सिंह मुंडा (जीवनी), माटी माटी अरकाटी (उपन्यास), आदिवासीडम (सं.) और प्राथमिक आदिवासी विमर्श (सं.) प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें ।