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Cheelgharby Ramashankar nishesh |
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Author | Synopsis |
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चीलघर’ नाटक आज के युग के कड़वे सत्य को उजागर एवं जीवित करता है। ये एक ऐसा सत्य जो इतना क्रूर, जिसे कहीं से भी उठाया जा सकता है। कुछ समझ में नहीं आता, समस्त सामाजिक ढाँचा अस्त-व्यस्त सा लगता है जो अववाहन करता दिखाई देता है। इसका हल सिर्फ मेरे, आपके, हमारे हाथ में है एवं केवल हमसे सम्बन्धित है, अन्य कोई कुछ नहीं कर सकता। इस जिम्मेदारी को केवल हमें ही उठाना होगा। कभी बचपन में सुनते थे दादी माँ की कहानी, या नानी माँ की कहानी, जो वास्तविक रूप में हमारे मस्तिष्क में इस तरह से बैठ जाती थी जिसे हम सारा जीवन कभी भुला नहीं पाते थे। हमने सुना है माँ बच्चे को जन्म देने से पहले उसे इतना योग्य बना देती थी कि आगे आने वाली परिस्थितियों से जूझने की शक्ति उसमें पहले से ही मौजूद रहती थी। अभिमन्यु का चक्रव्यूह में घुस जाना, गर्भ में ही प्रवेश करने का ज्ञान, एकलव्य को देखकर ही निशाना बाँधने का ज्ञान उन सबको केवल अपनी माता द्वारा ही प्राप्त हो सका था। हमारे ग्रन्थों में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं।
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