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Home Literature Short Stories Visham Raag
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Visham Raag
by Arun Prakash
4
4 out of 5
Creators
AuthorArun Prakash
PublisherRajkamal Prakashan
Synopsisसाहित्य के मौजूदा दौर में पाठ–सुख वाली कहानियाँ कम होती जा रही हैं । इस संकलन की कहानियों में पाठ–सुख भरपूर है । लेकिन यह सुख तात्कालिक नहीं है बल्कि ये निर्विवाद कहानियाँ देर तक स्मृति में बनी रहती हैं । लोकप्रियता और विचार–केन्द्रित कथा का मिजाज मुश्किल से मिलता है पर इन कहानियों मंे यह सुमेल इसलिए सम्भव हो पाया क्योंकि यहाँ पाठकों के प्रति गम्भीर सम्मान है । ये कहानियाँ पाठकों को उपभोक्ता नहीं, सहभोक्ताय श्रोता नहीं, सम्वादक बनने का अवसर देती हैं । इनमें विचार उपलाता नहीं, अन्तर्धारा की तरह बहता है, क्योंकि यह सृजन पाठक–लेखक सहभागिता पर टिका है । इस संकलन का कथा–क्षेत्र काफी खुला है । तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, बिहार, दिल्ली, पंजाब तक । नए–नए पेशे, नए दस्तकार हैं । ये जड़ परम्परा, नई परिस्थितियों से घिरे इनसानों की नाउम्मीदी, छोटी–छोटी उम्मीदों, कशमकशों, छटपटाहटों और उबरने की कोशिशों की कहानियाँ हैं । इनके चरित्रों में विभिन्न समुदायों, आस्थाओं, क्षेत्रों से आई स्त्रियाँ हैं जिनके दुख तो पुराने हैं पर उनसे टकराने के तरीके और सुख नए हैं । इनके झुग्गी–झोंपड़ी निवासी, आदिवासी, दलित और दस्तकार शाश्वत समस्याओं और बड़ी परिघटनाओं के भँवर में फँसे हैं । उनकी अदम्य जिजीविषा, राग–रंग और जिन्दगी से प्यार की कहानियों पर देश के आखिरी दो दशकों की छाया देखी जा सकती है । युग की प्रमुख आवाजों को सुरक्षित रखना इतिहास की जिम्मेवारी है, छोटी–छोटी अनुगूजों को सहेजना साहित्य की । मनुष्य विरोधी मूल्यों, सत्ताओं और संगठित संघर्षों की बड़ी उपस्थिति के बावजूद लघु, असंगठित और प्राय: व्यक्तिगत संघर्षों की बड़ी दुनिया है । इन कहानियों में उसी की अनुगूँजें हैं । ये कहानियाँ किसी एक शैली में नहीं बँधी हैं बल्कि हर कहानी का अलग और स्वतन्त्र व्यक्तित्व, नई भाषा, नई संरचना और आंतरिक गतिशीलता के सहारे निर्मित किया गया है । प्रयोगधर्मिता इन कहानियों का गुण तो है पर ये प्रयोग अटपटे या दिखावटी नहीं बल्कि सहज और स्वीकार्य हैं । कई पुरस्कारों से सम्मानित अरुण प्रकाश का यह पाँचवाँ संकलन है ।