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Anya Bhasha Shikshan Ke Brihat Sandarbhby Prof. dilip singh |
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Author | Synopsis |
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भाषा सामाजिक व्यनवहार का प्रमुख घटक है और सामाजिकों द्वारा भाषा के माध्यहम से ही अपने कार्यव्यातपारों का संचलन एवं संवर्धन किया जाता है। सिद्धांत किसी भी भाषा को मानक रूप्ा में प्रतिस्थासपित करते हैं परंतु सिद्धांतों एवं नियमों की अत्यकधिक जटिलता प्रयोक्ताषओं को उससे दूर करती है और प्रयोक्ता एक वैकल्पिक मार्ग तलाश लेता है। विश्वा की अधिकांश आधुनकि भाषाओं के विकास के कारणों में से यह भी एक कारण रहा है। जब भाषा अत्यमधिक व्यानकरणिक नियमबद्ध हो जाती है तो वह सामान्यं प्रयोक्ताो की पहुंच से बाहर हो जाती है और उसका अपभ्रंश रूप विकसित होने लगता है। नियमों की आबद्धता जरूरी है परंतु भाषा की संप्रेषणीयता पर भी पर्याप्ते ध्या न दिया जाना आवश्यतक है क्योंयकि यदि कोई प्रयोक्तात अपनी भाषा के माध्य म से अपने विचारों के संप्रेषण में असफल रहता है तो उसका भाषा ज्ञान कभी भी पूरा नहीं कहा जा सकता है। प्रयोग के व्याावहारिक पक्षों पर पर्याप्तर ध्या न दिया जाना चाहिए ताकि वह सुगमतापूर्वक प्रयोग में लाई जाती रहे। हिंदीतर भाषियों के लिए हिंदी के व्यापवहारिक रूप पर विचार करते हुए ही प्रोफेसर दिलीप सिंह ने इस ग्रंथ में व्यावहारिक पक्षों पर पर्याप्तप बल देते हुए लिखा है कि ‘‘अन्य भाषा शिक्षण (द्वितीय और विदेशी) के इसी परिवर्तनशील स्वरूप को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है।
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